वन नेशन वन इलेक्शन से क्या-क्या बदल जाएगा? ऐलान से मंजूरी तक 10 बड़े प्वाइंट में समझें हर बात


दिल्ली : हरेश अशोक बोधा

One Nation One Election: वन नेशन वन इलेक्शन के बिल के प्रस्ताव को मंजूरी देने के बाद केंद्र सरकार शीतकालीन सत्र में इसे संसद से पास कराएगी, जिसके बाद यह कानून बन जाएगा.


One Nation One Election: केंद्रीय कैबिनेट ने बुधवार (18 सितंबर 2024) को वन नेशन वन इलेक्शन पर पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता वाली समिति के प्रस्ताव को मंजूरी दे दी. पूर्व राष्ट्रपति के नेतृत्व वाली समिति ने वन नेशन वन इलेक्शन को लेकर मार्च 2024 में अपनी रिपोर्ट सौंपी थी. इस लेकर अब देश में राजनीति गरम चुकी है. कांग्रेस ने इसे मुद्दों से ध्यान भटकाने वाला फैसला बताया.


1. इस रिपोर्ट में पहले फेज में लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के चुनाव एक साथ कराए जाने की बात कही गई. इसमें आगे यह सिफारिश की गई है कि लोकसभा और राज्यों के विधानसभा चुनाव एक साथ पूरा होने के 100 दिनों के भीतर स्थानीय निकाय चुनाव भी कराए जाएं. समिति की सिफारिश में कहा गया, "पूरे देश में मतदाताओं के लिए एक ही मतदाता सूची होनी चाहिए. सभी के लिए एक जैसा वोटर कार्ड होना चाहिए."


2. केंद्र सरकार वन नेशन वन इलेक्शन बिल को शीतकालीन सत्र में संसद से पास कराएगी, जिसके बाद यह कानून बन जाएगा. पूर्व राष्ट्रपति की अगुआई वाली समिति ने वन नेशन वन इलेक्शन को लेकर देश की 62 राजनीतिक पार्टियां से संपर्क किया था, जिसमें से उन्हें 32 पार्टियों का समर्थन मिला था. इसमें 15 पार्टियों ने वन नेशनल वन इलेक्शन का समर्थन नहीं किया तो वहीं 15 पार्टियों ने कोई जवाब नहीं दिया.


3. समिति ने भारत के निर्वाचन आयोग की ओर से राज्य निर्वाचन प्राधिकारियों से विचार-विमर्श कर एक साझा मतदाता सूची और मतदाता पहचान पत्र बनाने की भी सिफारिश की. अभी लोकसभा और विधानसभा चुनाव कराने की जिम्मेदारी भारत के निर्वाचन आयोग की है, जबकि नगर निगमों और पंचायतों के लिए स्थानीय निकाय चुनाव राज्य निर्वाचन आयोग कराते हैं. समिति ने 18 संवैधानिक संशोधनों की सिफारिश की, जिनमें से अधिकांश को राज्य विधानसभाओं के मंजूरी की आवश्यकता नहीं होगी. हालांकि, इसके लिए कुछ संविधान संशोधन विधेयकों की आवश्यकता होगी, जिन्हें संसद से पारित करने की जरूरत होगी.


4. पीएम मोदी कई मौकों पर एक देश एक चुनाव का समर्थन कर चुके हैं. पीएम ने कहा था, देश में सिर्फ तीन या चार महीने ही चुनाव होने चाहिए. पूरे साल राजनीति नहीं होनी चाहिए. एक साथ चुनाव कराने से देश का संशाधन बचेगा." वहीं पीएम मोदी ने लाल किले की प्राचीर से भी कहा था, ‘‘देश को एक राष्ट्र, एक चुनाव के लिए आगे आना होगा."


5. न्यूज एजेंसी पीटीआई की रिपोर्ट के मुताबिक विधि आयोग सरकार के तीन स्तरों - लोकसभा, राज्य विधानसभाओं और नगर पालिकाओं और पंचायतों जैसे स्थानीय निकायों के लिए 2029 से एक साथ चुनाव कराने और त्रिशंकु सदन जैसे मामलों में एकता सरकार बनाने के प्रावधान की सिफारिश कर सकता है.


6. बीजेपी के कई दिग्गज नेता वन नेशन वन इलेक्शन की वकालत कर चुके हैं. गृह मंत्री अमित शाह ने मंगलवार (17 सितंबर 2024) को कहा था कि बीजेपी के नेतृत्व वाली एनडीए सरकार अपने मौजूदा कार्यकाल में ही वन नेशन वन इलेक्शन को लागू करेगी. उन्होंने कहा था, ‘‘हमारी योजना इस सरकार के कार्यकाल के दौरान ही 'एक राष्ट्र, एक चुनाव की व्यवस्था लागू करने की है.


7. केंद्रीय मंत्री अश्विनी वैष्णव ने कैबिनेट के फैसलों की ब्रीफिंग करते हुए कहा कि देश में 1951 से 1967 तक एक साथ चुनाव होते थे. उन्होंने कहा, समाज के सभी वर्गों से राय मांगी गई. अगले कुछ महीनों में आम सहमति बनाने की कोशिश करेंगे. समिति ने 191 दिन इस विषय पर काम किया. इस विषय पर समिति को 21 हजार 558 रिएक्शन मिले. इसमें से 80 फीसदी ने एक देश एक चुनाव का समर्थन किया.


8. वन नेशन वन इलेक्शन को लेकर अब देश में राजनीति भी गरमा गई है. कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने कहा कि वन नेशन वन इलेक्शन की व्यवस्था व्यवहारिक नहीं है और बीजेपी चुनाव के समय इसके जरिये असल मुद्दों से ध्यान भटकाने की कोशिश करती है. उन्होंने कहा कि एक देश एक चुनाव की व्यवस्था चलने वाली नहीं है.


9. केंद्रीय मंत्री और बीजेपी के फायर ब्रांड नेता गिरिराज सिंह ने वन नेशन वन इलेक्शन का समर्थन किया. उन्होंने कहा देश के सभी चीफ जस्टिस, देश के सभी नेताओं से राजनीतिक दलों से, देश के हर चैंबर ऑफ कॉमर्स से चर्चा की गई, और आज कैबिनेट की मंजूरी दी गई. देश के विकास के लिए  वन नेशन वन इलेक्शन जरूरी है. लॉ एंड ऑर्डर के लिए जरूरी है क्योंकि दो तीन महीने सारे फोर्स वहां लग जाते हैं. देश की प्रगति के लिए जरूरी है.


10. वन नेशन वन इलेक्शन व्यवस्था लागू करने की तैयारी के बीच केंद्र सरकार को सोमवार (16 सितंबर 2024) को प्रमुख घटक जेडीयू की समर्थन मिला था. जेडीयू की ओर से कहा गया कि इससे नीतियों में निरंतरता बनी रहेगी और बार-बार चुनाव से होने वाली परेशानियों से भी बचा जा सकेगा.








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